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दू॒णाशं॑ स॒ख्यं तव॒ गौर॑सि वीर गव्य॒ते। अश्वो॑ अश्वाय॒ते भ॑व ॥२६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dūṇāśaṁ sakhyaṁ tava gaur asi vīra gavyate | aśvo aśvāyate bhava ||

पद पाठ

दुः॒ऽनश॑म्। स॒ख्यम्। तव॑। गौः। अ॒सि॒। वी॒र॒। ग॒व्य॒ते। अश्वः॑। अ॒श्व॒ऽय॒ते। भ॒व॒ ॥२६॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:45» मन्त्र:26 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:26


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किन की मित्रता नहीं जीर्ण होती है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वीर) धीरता आदि गुणों से युक्त राजन् वा विद्वान् ! जो आप (गव्यते) गौ के सदृश आचरण करते हुए के लिये (गौः) गाय जैसे वैसे (अश्वायते) घोड़ों के सदृश आचरण करते हुए के लिये (अश्वः) घोड़ा जैसे वैसे (असि) हैं और जिन (तव) आपका प्रेम के आस्पद में बन्धा हुआ (दूणाशम्) दुर्लभ नाश जिसका वह (सख्यम्) मित्रपन है, वह आप हम लोगों के मित्र (भव) हूजिये ॥२६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे गौओं में बैल और घोड़ियों में घोड़ा प्रसन्न सदा ही होता है, वैसे ही सज्जनों की मित्रता अविनाशिनी होती है, ऐसा सब लोग जानें ॥२६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

केषां सख्यं न जीर्यत इत्याह ॥

अन्वय:

हे वीर राजन् विद्वन् वा ! यस्त्वं गव्यते गौरिवाश्वायतेऽश्व इवासि यस्य तव प्रेमास्पदबद्धं दूणाशं सख्यमस्ति स त्वमस्माकं सुहृद्भव ॥२६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दूणाशम्) दुर्ल्लभो नाशो यस्य तत् (सख्यम्) मित्रत्वम् (तव) (गौः) धेनुरिव (असि) (वीर) धैर्य्यादिगुणयुक्त (गव्यते) गौरिवाचरते (अश्वः) तुरङ्गः (अश्वायते) अश्वमिवाचरते (भव) ॥२६॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा गोषु वृषभो वडवास्वश्वः प्रीतः सदैव वर्त्तते तथैव सज्जनानां मित्रताऽविनाशिनी भवतीति सर्वे विजानन्तु ॥२६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे गाईच्या सहवासात बैल व घोडीबरोबर घोडा प्रसन्न असतो तशीच सज्जनांची मैत्री निरंतर टिकणारी असते, हे सर्वांनी जाणावे. ॥ २६ ॥